(छात्र शक्ति की जीत) शिक्षा हर छात्र का मौलिक अधिकार है और इसके लिए दी जाने वाली छात्रवृत्ति आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जब किसी छात्र की छात्रवृत्ति बिना किसी कारण के खारिज कर दी जाती है, तो यह उसके लिए चिंता का विषय बन जाता है। ऐसा ही कुछ मेरे और अन्य छात्रों के साथ हुआ जब हमने लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया था। हम सभी को उम्मीद थी कि हमारी छात्रवृत्ति जल्द ही स्वीकृत हो जाएगी और हमारी पढ़ाई सुचारू रूप से चलती रहेगी। लेकिन जब 10 फरवरी को छात्रवृत्ति फॉर्म में सुधार की अंतिम तिथि थी, तो मैंने अपने फॉर्म का स्टेटस चेक किया तो मैं चौंक गया। स्टेटस में मुझे रोल नंबर वैध नहीं होने और इसे खारिज कर दिए जाने की समस्या का सामना करना पड़ा। यह देखकर मैं चौंक गया, क्योंकि मैंने पूरी प्रक्रिया सही तरीके से पूरी की थी। मुझे यह भी पता चला कि न केवल मेरा फॉर्म बल्कि कई अन्य छात्रों का फॉर्म भी इसी तरह से खारिज कर दिया गया था। स्थिति बहुत निराशाजनक थी। अगर फॉर्म खारिज हो जाता, तो हमें इस साल छात्रवृत्ति नहीं मिलती और इसका सीधा असर हमारी पढ़ाई और आर्थिक स्थिति पर पड़ता। इस समस्या का समाधान निकालना जरूरी था। लेकिन यह आसान नहीं था।

मुख्य छात्र नेता

(छात्र शक्ति की जीत) छात्र सभा इकाई के अध्यक्ष प्रिंस कुमार के संचालन में हुआ, जिसमें मुख्य रूप से लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय सचिव अभिषेक श्रीवास्तव, इकाई महासचिव रजत अग्रहरि, प्रदेश सचिव अछय यादव, हरीश रावत, विपुल यादव, शिवा जी यादव, रोहित यादव, आदित्य पांडे, अनुराग यादव, सुरयान्श आर्यन, नीतीश, अक्षत पांडे, जतिन यादव, शिवपूजन पांडे, आयुष यादव, अनुराग चौधरी, मानस चौधरी, विशाल पटेल, धर्मेंद्र, सतीश गुप्ता, अश्विन तिवारी, सत्यम सिंह, अशोक यादव, रिशु, कार्तिक यादव, सत्यम यादव तथा सैकड़ों की संख्या में छात्र उपस्थित रहे।
यह समस्या को हल करने का पहला कदम है

(छात्र शक्ति की जीत) जब हम छात्रों में से कुछ ने विश्वविद्यालय प्रशासन से संपर्क किया और अपनी समस्या के बारे में बताया तो उन्होंने शुरुआत में हमें संतोषजनक जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि यह कोई तकनीकी समस्या हो सकती है, लेकिन उन्होंने इसे ठीक करने की कोई पुष्ट प्रक्रिया नहीं बताई। हमें एहसास हुआ कि हम अकेले कुछ हासिल नहीं कर सकते। अगर हमें अपना हक पाना है तो हमें एकजुट होकर अपनी आवाज उठानी होगी। इसी सोच के साथ हमने इस समस्या से जूझ रहे और छात्रों को इकट्ठा किया। अब हमारी संख्या काफी बढ़ गई थी। जब हमने सामूहिक रूप से अपनी मांगें विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने रखीं तो उन्होंने हमारी बात गंभीरता से सुनी।और इसके पीछे का कारण पूरी तरह से हमारे छात्र नेताओं का काम है।
छात्र नेताओं का समर्थन और विरोध प्रदर्शन

(छात्र शक्ति की जीत)विश्वविद्यालय हमारी बात पूरी तरह से नहीं सुन रहा था, लेकिन हमारे छात्र नेताओं ने एकजुट होकर अपनी बात रखी और अपने हक की लड़ाई को आगे बढ़ाया। छात्र नेताओं के समर्थन से हमारा आत्मविश्वास और भी बढ़ा और हमने तय किया कि जब तक हमारी समस्या का समाधान नहीं हो जाता, हम पीछे नहीं हटेंगे। हमने विश्वविद्यालय के अधिकारियों से इस संबंध में मिलने की कोशिश की, लेकिन वे हमें बार-बार टालते रहे। आखिरकार जब हमें कोई रास्ता नहीं दिखा तो हमने शांतिपूर्वक विरोध करने का फैसला किया। हमने विश्वविद्यालय परिसर में अपनी मांगों को मजबूती से रखा और अधिकारियों से जवाब मांगा। प्रशासन के लिए हमारे विरोध को नजरअंदाज करना अब आसान नहीं था। जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ती गई, हम प्रशासन से मिले और उन्हें समझाया कि यह सिर्फ तकनीकी गड़बड़ी नहीं है, बल्कि यह सैकड़ों छात्रों के भविष्य का सवाल है। अगर उन्हें छात्रवृत्ति नहीं मिल पा रही है, तो हो सकता है कि हमारे जैसे कई छात्र हैं जो अपनी फीस नहीं भर पा रहे हैं और इस वजह से विश्वविद्यालय उन्हें निकाल सकता है।
संघर्ष रंग लाया प्रशसन ने हमारी मांगे मानी
(छात्र शक्ति की जीत)लगातार प्रयासों और दबाव के कारण आखिरकार विश्वविद्यालय प्रशासन ने हमारी बात सुनी, उन्होंने हमारी समस्या को गंभीरता से लिया और छात्रवृत्ति फॉर्म स्वीकार करने के लिए सहमति जताई। यह हमारे लिए बहुत बड़ी जीत थी, अगर हम चुपचाप सब कुछ सह लेते तो हमें छात्रवृत्ति नहीं मिल पाती लेकिन हमने एकजुट होकर अपनी बात रखी, संघर्ष किया और आखिरकार अपनी मांगें मनवाने में सफल हुए। इसमें सबसे बड़ी भूमिका हमारे छात्र नेताओं की है, जिनकी वजह से यह संभव हो पाया।
इस संघर्ष से मिली सीख
(छात्र शक्ति की जीत)इस पूरे अनुभव ने हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाई हैं। पहली बात, एकता में ताकत होती है। अगर हम अकेले ही प्रशासन को अपनी समस्या बताते हैं, तो हमें नजरअंदाज किया जा सकता है। लेकिन हम सबने मिलकर विरोध किया और प्रशासन ने हमारी बात सुनी। दूसरी बात, हमें अपने अधिकारों के बारे में पता होना जरूरी है। अगर हमें यह नहीं पता होता कि छात्रवृत्ति हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है और इसे पाने के लिए क्या करना चाहिए, तो हम इस समस्या का समाधान नहीं ढूंढ पाते। तीसरी बात, संघर्ष से ही सफलता मिलती है। अगर हम चुपचाप सब कुछ स्वीकार कर लेते, तो शायद हमें छात्रवृत्ति नहीं मिलती। लेकिन हमने किसी की नहीं सुनी और अपनी बात मजबूती से रखी और आखिरकार सफल हुए। चौथी बात, अपनी बात को शांतिपूर्ण तरीके से रखना जरूरी है। हमने यहां सुनिश्चित किया कि हमारा विरोध शांतिपूर्ण और व्यवस्थित रहे। हमारी बात को गंभीरता से लिया गया और हमें सकारात्मक परिणाम मिले।
निष्कर्ष
(छात्र शक्ति की जीत)रूप में यह घटना सिर्फ़ मेरी या कुछ छात्रों की जीत नहीं थी बल्कि यह सभी छात्रों के लिए एक प्रेरणा है कि अगर उन्हें किसी भी तरह की समस्या का सामना करना पड़े तो उन्हें एकजुट होकर अपनी आवाज़ उठानी चाहिए। किसी भी समस्या का समाधान तभी हो सकता है जब हम उसके लिए काम करें। अगर हम चुप रहें और किसी के साथ रहें तो हमें न्याय और हमारा अधिकार अवश्य मिलेगा। लखनऊ विश्वविद्यालय में हुआ यह संघर्ष यह साबित करता है कि जब छात्र एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाते हैं तो कोई भी प्रशासन उन्हें अनदेखा नहीं कर सकता। जीत सिर्फ़ छात्रवृत्ति की नहीं है बल्कि यह छात्र शक्ति है। उम्मीद है कि भविष्य में जब किसी छात्र को कोई भी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा तो वह इसी तरह सामने आएगा और अपनी लड़ाई लड़ेगा और जीत अपने हाथों में लेगा।